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Supreme Court Decision: सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, तीन साल से किराया न देने वाले किराएदार को खाली करना पड़ा मकान

Supreme Court Decision: किराए के मकान को लेकर मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद कोई नई बात नहीं है। लेकिन हाल ही में ऐसा एक मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जिसमें किराएदार ने लगभग तीन साल तक किराया नहीं चुकाया और प्रॉपर्टी खाली करने से भी मना कर दिया। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मकान मालिक के पक्ष में अहम फैसला सुनाया, जो आने वाले समय में कई मामलों की दिशा तय कर सकता है।

क्या था मामला?

यह केस तब शुरू हुआ जब एक किराएदार ने तीन साल तक अपने मकान मालिक को किराया नहीं दिया। मकान मालिक ने जब प्रॉपर्टी खाली करने को कहा, तो किराएदार ने साफ इनकार कर दिया। मजबूर होकर मकान मालिक को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। मामला निचली अदालत से शुरू होकर हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

निचली अदालत का निर्णय

  • कोर्ट ने किराएदार को प्रॉपर्टी खाली करने का आदेश दिया।
  • बकाया किराया जमा करने के लिए दो महीने का समय दिया गया।
  • साथ ही मुकदमे की अवधि के दौरान हर महीने ₹35,000 किराया चुकाने का निर्देश भी दिया।

हाईकोर्ट ने भी दिया मालिक के पक्ष में फैसला

किराएदार ने इस फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन वहां भी उसे राहत नहीं मिली।
हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि

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  • किराएदार ₹9 लाख की बकाया राशि चार महीने में जमा करे।

सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला

किराएदार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन वहां भी उसे कोई राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने

  • याचिका खारिज की।
  • प्रॉपर्टी तुरंत खाली करने का आदेश दिया।
  • बकाया किराया तुरंत जमा कराने को कहा।
  • किराएदार के वकील द्वारा मांगा गया अतिरिक्त समय भी अस्वीकार कर दिया।

फैसले का महत्व

इस केस से कुछ जरूरी बातें सामने आती हैं

  • मकान मालिक को उसकी संपत्ति पर पूरा अधिकार है।
  • किराएदार को समय पर किराया चुकाना अनिवार्य है।
  • अगर किराएदार नियमों का पालन नहीं करता, तो मकान मालिक कोर्ट का सहारा लेकर संपत्ति वापस ले सकता है।

रेंट एग्रीमेंट की अहमियत

  • किराए से जुड़े सभी नियमों को रेंट एग्रीमेंट में स्पष्ट लिखा जाना चाहिए।
  • इससे भविष्य में विवाद की स्थिति से बचा जा सकता है।
  • किराया, अवधि, नोटिस पीरियड, और अन्य शर्तें दस्तावेज में होना जरूरी है।

कानून क्या कहता है?

यह फैसला दर्शाता है कि कानून सभी के लिए समान है, चाहे वह किराएदार हो या मकान मालिक।
हर व्यक्ति को अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

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निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मकान मालिकों के अधिकारों की पुष्टि करता है और किराएदारों के लिए एक चेतावनी भी है कि कर्तव्य से मुंह मोड़ने पर उन्हें कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है

Disclaimer

यह जानकारी केवल सामान्य उद्देश्य से दी गई है। किसी कानूनी मामले में उचित सलाह के लिए किसी योग्य वकील से संपर्क करें। अलग-अलग राज्यों के किराए कानून भिन्न हो सकते हैं, इसलिए क्षेत्रीय नियमों की जांच जरूर करें।

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